परिचय
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:- ब्रिटिश साम्राज्य काल से उत्तर प्रदेश में शिक्षा संस्कृति को गौरवान्वित और प्रतिष्ठापित करने वाले गवर्नमेंट पेडगोजिकल इंस्टिट्यूट, इलाहाबाद को उसके गौरवशाली इतिहास और उपयोगिता के कारन राज्य की शिक्षा व्यवस्था को गति एवं दिशा निर्देश प्रदान करने के साथ साथ शिक्षक शिक्षा में गुणवत्ता संवर्धन की दृष्टि से मानव संसाधन विकास मंत्रालय (भारत सरकार) नई दिल्ली ने शिक्षक शिक्षा योजना के अंतर्गत उसे उच्चीकृत करके नए नाम इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज इन एजुकेशन (आई० ए० एस० ई०) इलाहाबाद के रूप में अपने आदेश एफ-४५-२०/९३-टी० ई०-११/३१ मार्च १९९५ के द्वारा स्थापित किय। जो शिक्षा के क्षेत्र में समस्त उत्तरी भारत में स्थापित अपने ढंग का विशिष्ठ राजकीय संस्थान है।
पूर्व में भारत की यह एक मात्र संस्था थी, जो शिक्षक प्रशिक्षण के अतिरिक्त पाठ्यक्रम निर्माण, पाठ्य पुस्तक लेखन, मूल्याङ्कन, शैक्षिक शोध और शिक्षा के नवाचार आदि अभिनव कार्यक्रम के सञ्चालन में अग्रणी रही है। वर्तमान में देश में ३६ आई० ए० एस० ई० विभिन्न राज्यों में शिक्षा विभाग के अंतर्गत स्थापित व संचालित हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश में राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एस०सी०ई०आर०टी0) उत्तर प्रदेश लखनऊ के अधीन शिक्षक शिक्षा योजनान्तर्गत एक मात्र संस्था के रूप में यह संस्थान संचालित है। इस संस्थान को उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल महोदय द्वारा उत्तर प्रदेश के राजाज्ञा संख्या ४६८/१५-११-२०००-१४९९ (६)/९६ दिनांक ९ जून २००० के माध्यम से सहर्ष स्वीकृति प्रदान है। इस संस्थान के गौरवशाली अतीत एवं प्रगतिशील वर्तमान को देखकर उत्तर प्रदेश शासन ने अपने पत्रांक ४६८/१५-११-२०००-१४९९ (६)/९६ दिनांक ९ जून २००० द्वारा आई०ए०एस०ई० के अंतर्गत प्रशासनिक एवं अकादमिक २७ तथा शिक्षणेत्तर ४३ कुल ७० पदों का सृजन किया है।
संस्थान
की समय रेखा
* १९०० में राजकीय केंद्रीय अध्यापन विज्ञान संस्थान इलाहबाद के रूप में स्थापना हुई।
* १९०० में वर्नाकूलन ट्रेनिंग इलाहबाद (एल० टी० सी० प्रशिक्षण) के रूप में क्रियान्वित हुआ।
* १९०१० में राजकीय प्रशिक्षण महाविद्यालय इलाहाबाद (एल० टी० सी० प्रशिक्षण) की स्थापना हुई।
* १९२७ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया।
* १९४८ राजकीय केंद्रीय अध्यापन विज्ञानं संस्थान, इलाहाबाद आचार्य नरेंद्र देव समिति १९३९ के परिप्रेक्ष्य में माध्यमिक शिक्षा संगठन योजना के अंतर्गत राजाज्ञा संख्या- ए/३३७४/एक्स बी -३१३७-४८/ दिनांक २९ जून १९४८ द्वारा इसे राजकीय सेंट्रल पेडागॉजिकल इंस्टिट्यूट के रूप में परिवर्तित किया गया।
* श्री ए० एच० मेकेंजी जी (१९०९-१९१९) जोकि एक महान शिक्षाविद थे, इस संस्थान के प्रथम शिक्षाविद प्राचार्य थे।
* भारत सरकार के पत्रांक: एफ ४५-२०/ ९३ टी० ई०/ दिनांक ३१ मार्च १९९५ द्वारा उच्चीकृत।
* उत्तर प्रदेश शासन के पत्रांक: ४६८/१५-११-२०००-१४९९ (6)/ ९६ दिनांक ०९ जून २००० द्वारा पद सृजित।
इस संस्थान में अनेक विद्वानों एवं श्रेष्ठ जनों ने अध्ययन किया। सत्र १९४१-४२ में माननीय दीन दयाल उपाध्याय एवं माननीय सम्पूर्णानन्द जी अध्यनरत रहे हैं।
पूर्व में भारत की यह एक मात्र संस्था थी, जो शिक्षक प्रशिक्षण के अतिरिक्त पाठ्यक्रम निर्माण, पाठ्य पुस्तक लेखन, मूल्याङ्कन, शैक्षिक शोध और शिक्षा के नवाचार आदि अभिनव कार्यक्रम के सञ्चालन में अग्रणी रही है। वर्तमान में देश में ३६ आई० ए० एस० ई० विभिन्न राज्यों में शिक्षा विभाग के अंतर्गत स्थापित व संचालित हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश में राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एस०सी०ई०आर०टी0) उत्तर प्रदेश लखनऊ के अधीन शिक्षक शिक्षा योजनान्तर्गत एक मात्र संस्था के रूप में यह संस्थान संचालित है।
शिक्षा प्रक्रिया को वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित करने तथा उसे रोचक एवं संग्राह्य बनाने हेतु संस्थान में एक अनुपम प्रयोगशाला है, जिसमें श्रव्य- दृश्य, शैक्षिक तकनीकी एवं काष्ठ शिल्प इकाई गठित है। शिक्षक प्रशिक्षकों को तकनीकी सामग्री यथा फिल्म, फिल्म स्ट्रिप्स, प्रोजेक्टर, एपिडास्कोप, ओवरहेड प्रोजेक्टर, टेप रिकॉर्डर, कंप्यूटर, प्रिंटर, इलेक्ट्रॉनिक ब्लैकबोर्ड, रंगीन टेलीविज़न,वी०सी०आर०, वीडियो कमरा आदि के माध्यम से सैद्धांतिक तथा प्रयोगिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।
संस्थान में विविध शैक्षिक पक्षों पर आधारित लगभग एक लाख ग्रंथों का विशाल पुस्तकालय है, जिसमें शिक्षा के विविध आयामों से सम्बंधित प्राचीन एवं अर्वाचीन पुस्तकें, देश विदेश की विभिन्न पाठ्य पुस्तकें, शोध प्रबंध एवं अन्य उपयोगी साहित्य संग्रहीत हैं। इससे सम्बद्ध एक वाचनालय भी है, जिसमें लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र, उत्कृष्ट पाक्षिक एवं मासिक पत्रिकाएं तथा जर्नल्स आदि अध्ययन हेतु उपलब्ध हैं।
संस्थान सदैव शिक्षक शिक्षा एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में उच्च स्तरीय मानदंडों को स्थापित करने हेतु प्रतिबद्ध रहा है। अतः संस्थान में अपने अपने क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को पदस्थापित किया जाता रहा है ताकि प्रशिक्षुओं को संस्थान की गरिमा के अनुरूप प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके।